Friday, 23 September 2011

नदी और मछली

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............... और नदी है कि
बहती चली जाती है
किनारों से टकराकर धाराएँ
लहरों की गति के गीत को
संगत दे रही हैं
उसकी अदम्य त्वरा 
चुनौती दे रही है जवान मछलियों को


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धाराओं के अनुकूल 
टूटी टहनियाँ और नारियल बहते हैं
पर मछलियाँ जवान हैं
चुनौतियाँ उन्हें मंजूर हैं 
वे मूंगे के पहाड़ों के गहवरों में 
तैय्यारी में जुटी हैं कि 
इस बार नदी से ही
प्रतिकूलता का रहस्य जान लेना है
बड़ी ही गबरू और मरजानी हैं मछलियाँ


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मछलियाँ और नदियाँ मित्र हैं
और दोनों जानती हैं कि
यकायक कुछ नहीं बदलता
फिर 
मगरमच्छ का तख़्त तो काफी मजबूत है


*
नदियों की चुनौतियाँ
मछलियों के प्रशिक्षण के 
अध्याय हैं 
नदियाँ उच्चारती हैं प्रतिकूलता के मंत्र
और मछलियाँ सजग कानों से सुन रही हैं
मंत्रमुग्ध लौट रही हैं
झुण्ड के झुण्ड 
एक सामूहिक रणनीति तय करने के लिए
मूंगे के पहाड़ों की दरार में
जहाँ मगरमच्छ को 
पहुँचने का साहस नहीं होता


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मछलियाँ गलफर फुलाकर
आक्रोश व्यक्त कर रही हैं और
सामूहिक शक्ति को कारगर बनाने के उपाय ढूंढ़ रही हैं
मछलियाँ निराशा से अपरिचित हैं
संघर्ष में रत घायल या 
मृत सहयात्रियों की गिनती कर
मातम मनाने पर समय बर्बाद नहीं करतीं
बल्कि अहर्निश तैय्यारी और हमले के
क्रम को एकबद्ध करती रहती हैं
तैय्यारी और हमले
क्रमशः लय और ताल हैं
दोनों से निबद्ध मछलियाँ
क्रांति-गीत की सर्जना करती रहती हैं 
और नदी है कि बहती चली जाती है


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नदी मित्र है और प्रसूति-गृह भी
और प्रशिक्षण के दरम्यान नटों की तरह
कलाबाजियाँ भी सिखाती है मछलियों को


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मछलियाँ 
मूंगे के पहाड़ों से निकलकर 
वेग से बढ़ती जा रही हैं
धाराओं को चीरती हुयीं
जल के अणुओं को तोड़कर 
आक्सीजन को तीव्रता से अपने गलफरों में भरती हुयीं 
कभी एक कदम पीछे
कभी दो कदम आगे
टोह लगाती मछलियाँ
ठुमुक-ठुमुक कर चली जा रही हैं


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मछलियाँ जानती हैं कि
यकायक कुछ नहीं बदलता 
अगले मूंगे के पहाड़ के गहवर को
मछलियों ने विश्राम - स्थल बनाया है
अब यहाँ से
उन सम्भावित ठिकानों की ओर बढ़ना है 
जिधर शत्रु छिपता हुआ भाग रहा है
इस बार अपनी चाल को
बंकिमता भी देनी है


प्रभात सरसिज 

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