Saturday, 24 September 2011

डोन जुआन

एशिया के
इस छोटे से गाँव में 
पतझड़ एक सौ बासठवीं बार आया है
एक सौ बासठ बार हवा तेज - तेज चली है
एक सौ बासठ बार सारे वृक्षों की पत्तियाँ 
जड़ों को समर्पित हुई हैं 
रेत के अन्धड़ में फँसते
बरौनियों में फंसाए समुद्री घास 
तुम कैसे चले आये यहाँ 
इस वक्त  डोन जुआन !
जबकि 
कविता में
पराक्रमी योद्धा अभी 
पसीने से तर-बतर नहीं हुआ है

आओ डोन जुआन !
स्वागत है
लबादे में छिपे अपने बदन को
बाहर करो 
बगल में दबाये खंजर को
यहाँ रखो  -  मेरी खुली कलम के पास
इस झुके टोप को हटाओ
ढके भौंहों में 
पूरब की हवा लगने दो
लो यह अंगोछा 
पसीने के नमक की धारियाँ
ललाट पर उग आई हैं 
पोंछ डालो 
यह मेड्रिड नहीं 
तुम्हारी जानी-पहचानी 
सड़कें गलियाँ नहीं हैं यहाँ 
फिर भी तुम्हें पहचान गया 
इसलिए कि
तुम्हारी आँखों के समुद्र में 
खारा पानी के अलावा 
भीगे रेत झलक रहे हैं 

यह सही है कि 
तुम जैसे लोगों की 
बाढ़ है दुनिया में 
इसलिए कठिन है तुम्हें पहचानना 
दुनिया के ढीठ सूरमाओं की तरह 
तुम भी नहीं चाहते कि बेवजह
बादशाह से हो तुम्हारा सामना 
फिर भी निष्कासन के आदेश को तोड़ 
तुम चले ही जाते हो मेड्रिड 
जिस धरती पर 
गिटारों पर गूँजते हैं तुम्हारे गीत 
जिन गीतों में 
धडकनें उठती - गिरती हैं   इस तरह 
जैसे कगार पर लहरें पछाड़ खाती हैं 

न्यायिक द्वन्द-युद्ध में 
कमांडर को मौत की घाट उतारने वाला 
तुम्हारा यह निर्मम खंजर 
आज मेरी खुली कलम के बगल में है 
प्यार को संगीत में ढ़ालने वाली 
तुम्हारी कविताएँ मेरे कंठ में हैं
तुम्हारे गीतों में 
तेजपत्तों की महक है
मधुर पवन के आगमन के लिए 
बार-बार छज्जे की खिड़कियों को 
खोल देते हैं तुम्हारे शब्द 
स्याही घुले-मिले नीले आसमान में 
चमकता है उजला चाँद 
तुम्हारे गीतों की पंक्तियों से
बहुत दूर है अमावस 
कभी नहीं ढलती है जवानी तुम्हारे गीतों में 
गिटार पर जब भी 
ध्वनित होते हैं तुम्हारे गीत 
तो ठहर जाता है मधुर पवन 
ऐसे क्षणों में 
पेरिस के श्याम - नभ में 
बादल छा जाते हैं 

सीने पर अचूक वार करने वाला 
तुम्हारा खंजर अभी चुप है 
समय आने पर 
ठीक दिल पर करता है यह तिकोना घाव 
वैसे 
दुष्ट के शव को 
ठिकाना लगाने से पहले 
अपनी प्रियतमा को बेतहासा चूमने की
तुम्हारी चाहत
तुम्हारी गीतों के टेक हैं 

स्वागत है डोन जुआन !
अब एक बारगी 
एक सौ बासठ बार 
तुम्हारा स्वागत है एशिया के इस गाँव में 
इसी गाँव के 
बीचो-बीच बहती है एक पहाड़ी नदी 
जिसका पानी 
डोना अन्ना के 
शांतिमय चुम्बन की तरह शीतल है
जबकि अभी इस कविता में 
पराक्रमी योद्धा 
पसीने से तर-बतर नहीं हुआ है 
कुछ समय तक 
एशिया के इसी गाँव में विश्राम करो डोन जुआन !
क्योंकि 
कठोर पाषाणी पंजा 
इस बार के न्यायिक द्वन्द युद्ध में 
भहरा कर टूट जाने वाला है 

प्रभात सरसिज
पतझड़, १९९२ 

१. डोन जुआन - महाकवि पुश्किन रचित "पाषाणी अतिथि" काव्य-नाटिका का नायक (रचनाकाल : पतझड़, १८३०)
२. मेड्रिड - एक शहर का नाम 
३. कमांडर - कमांडर की मृत्यु डोन जुआन द्वारा न्यायिक द्वन्द-युद्ध में हुई थी 
४. डोना अन्ना - कमांडर की विधवा पत्नी / कमांडर की समाधि के पीले मरमर पत्थर पर सिर टिकाई डोना अन्ना को देख डोन जुआन मोहित हो गया था / डोना अन्ना से उसका अंतिम और वास्तविक प्रेम था जो सूत्रबद्ध नहीं हो पाया  

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