लेकिन
न्यायाधीश के सभी बाल सफ़ेद हो गए
परेशान हैं न्यायाधीश
लाचार हैं न्यायाधीश
बीच-बीच में
घुस आते हैं संविधान-संशोधन के गीदड़
गीदड़ कानून की किताब पर
राल टपकाते हुए बैठ जाते हैं
बदरंग लाल जाकेट पहनी अदालत
परेशान है
संसद के दरवाजे से निकल
अदालत के दरवाजे में
क्यों घुस जाते हैं गीदड़ ?
तमतमा रहे हैं बूढ़े न्यायाधीश
न्यायाधीश के माथे पर बल पड़े हैं
उनकी चेतना में
रह-रहकर कौंधते हैं विचार
अभी बेसब्र नहीं हुए हैं न्यायाधीश
क्योंकि अदालत
अभी तक बुढ़िया नहीं हुई है
प्रभात सरसिज
२६ अक्टूबर, १९९४
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