Saturday, 24 September 2011

बसंत है

बसंत है 
झरने से मिल रहे हैं -
असंख्य पक्षियों के बोल,
रुई से बादलों के कोरों से 
घुल रहे हैं 
लौटती सैलानी चिड़ियों के पंख 
दिन में भी 
केशर की क्यारियों में 
बसती है चाँदनी की शीतलता 
लकड़हारों के बच्चों के लिए
पहाड़ भेजते हैं मधु

जंगलों के जर्रों में
बिखर रहे हैं सूखे पत्ते 
सूखे पत्तों से
निकलती हैं चरमराहट की आवाज 
चल रहे हैं हिंस्र भेड़िये
थूथन से जड़ों को 
खोदने में लगे हैं बनैले सूअर 

इधर 
साख-साख के पोरों पर 
चिहुंक रहे हैं असंख्य नए पात 
गीतों में 
प्रवेश करना चाहते हैं गुलमुहर 

प्रभात सरसिज

No comments:

Post a Comment