Sunday, 11 September 2011

पहाड़ (तीन)

मैं जहाँ भी जाता हूँ
पहाड़ जाता है 
मैं जहाँ भी रहता हूँ
पहाड़ बाहर कम और अन्दर ज्यादा रहता है
अन्दर के पहाड़ के नीचे भी
बहती है एक नदी
जैसे ही नदी बनती है कोई इच्छा
पहाड़ इरादा बनकर खड़ा हो जाता है

प्रभात सरसिज
५ जुलाई, १९९२

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