Sunday, 11 September 2011

पहाड़ (एक)

मैंने पहाड़ को छुआ
आत्मविश्वास से भरे हैं उसके अंग
सिद्धांत की तरह सख्त 
प्रतिरोधी कार्रवाई में
तैयार हर वक़्त 
हाथों में लिए शाल-वृक्ष

पहाड़ धो रहा है 
अपनी एड़ियाँ नदी में
बिबाइयां बनी हैं बसेरा 
रंगीन मछलियों का

पहाड़ थामे है
अपनी चोटी पर पूरा आकाश
आँधियों के आँचल 
पहाड़ के धुमैले काँख में फँसे हैं

एक नया तूफ़ान उतर रहा है पहाड़ से
वह आदमी की 
छातियों में चाहता है बसेरा
पहाड़ से उतरता तूफान
पूरी उम्मीद के साथ 
मुड़कर देखता है कभी चोटी को
कभी चोटी पर टिके आकाश को

प्रभात सरसिज
५ जुलाई, १९९२

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