Monday, 19 September 2011

जंग

जंग कोई भी हो
जंग में अनिवार्य रूप से उलझते हैं भाग्य
जंग नहीं होती है मात्र 
दृष्टिकोणों का टकराव 
मोर्चे की रेखा 
हमारे दिलों से गुजरती है
लड़ते हैं प्रतिद्वन्दी विचारधाराओं के शिविर 
सहमत - असहमत गुटों के बीच
छिड़ती है लड़ाई

जंग में
अहर्निश जागता है ह्रदय 
अपने आस - पास
होने वाली बातों पर ह्रदय 
सहानुभूतिपूर्ण प्रतिक्रिया दिखाता है
पहली नजर में
अहानिकारक लगती है जंग
लेकिन छिड़ती है जंग तो
मर - कट जाते हैं लोग
बचे हुए लोग जारी रखते हैं जंग
बुद्धि और विवेक
हो जाते हैं कटु और प्रचण्ड
कोई - कोई तो 
शक्ति की परवाह किये बिना
भाड़ में अकेले चने की तरह लड़ते हैं
तवारीख़ में
उनका नाम होता है दर्ज
जंग के बाद
जीवन के शाश्वत - विजय की गूंज
गीतों में अपनी जगह बनाती है

प्रभात सरसिज
२६ अक्टूबर, १९९४

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