चमक उठी हैं दूरस्थ पहाड़ियाँ
क्षितिज पर सफ़ेद बादल
हिममण्डित हेकरियों की तरह
जमा हो रहे हैं
पथरा गयीं हैं वृक्षों की पत्तियाँ
वृद्ध कृषक की अंतिम-यात्रा में
बढ़ रहा है जन-समूह कब्रिस्तान की ओर
मृत्यु के समय
किसान का बायाँ हाथ
पकड़े हुआ था कुदाल
मूर्ख मृत्यु !
आखिर तू कब तक
स्वेच्छाचार बंद करेगी ?
कब तक बंद करेगी
श्रेष्ठतम व्यक्तिओं को उठाना ?
इतना भी नहीं जानती कि
मृत्यु-पश्चात भी
चिरंजीवी होते हैं कृषक !
प्रभात सरसिज
२५ अक्टूबर, १९९४
(सा० अमृत / २८.०१.२००३)
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