Saturday, 17 September 2011

मूर्ख मृत्यु

रहस्यमय उदासीनता से
चमक उठी हैं दूरस्थ पहाड़ियाँ
क्षितिज पर सफ़ेद बादल
हिममण्डित हेकरियों की तरह
जमा हो रहे हैं
पथरा गयीं हैं वृक्षों की पत्तियाँ
वृद्ध कृषक की अंतिम-यात्रा में
बढ़ रहा है जन-समूह कब्रिस्तान की ओर
मृत्यु के समय
किसान का बायाँ हाथ
पकड़े हुआ था कुदाल

मूर्ख मृत्यु  !
आखिर तू कब तक
स्वेच्छाचार बंद करेगी ?
कब तक बंद करेगी
श्रेष्ठतम व्यक्तिओं को उठाना ?
इतना भी नहीं जानती कि
मृत्यु-पश्चात भी
चिरंजीवी होते हैं कृषक !

प्रभात सरसिज
२५ अक्टूबर, १९९४
(सा० अमृत / २८.०१.२००३)

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