ठेंगा दिखाता खरबूजा पक गया
खरबूजा -
धूप में स्वर्ण-पिंड के सदृश चमकता
छोटा होते हुए भी
खरबूजा पत्थर की तरह भारी है
अछूती धरती पर
उगे पहले खरबूजे का स्वाद
दूसरों की जीभ तक पहुँचाना चाहते हैं किसान
दूसरों की जीभ तक पहुँचाना चाहते हैं किसान
अछूती धरती पर
पहली बार खिले हैं कपास
श्वेत और पाटलवर्णी हो रहे हैं खेत
मंद झोंकों के इशारे पर
कपास के फूल एक साथ हिलकर
अभिनन्दन करते हैं
न जाने कहाँ तक है अछूती धरती का विस्तार
बीजों के लिए
तड़प रही है अछूती धरती
सप्राण होती हैं समस्त धरती
अनुर्वर नहीं रहना चाहती है धरती
आँधी और गरमी के
शिकंजे में जकड़ी
उकता चुकी है धरती
अछूती धरती के विस्तार पर भी
फैलती है आकाश की
कांतिमय नीलिमा
हल की बाट जोह रही है धरती
अछूती धरती अपने जीवन-वृक्ष से
झाड़ना चाहती है मधुर फल
प्रभात सरसिज
२८ अक्टूबर, १९९४
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