Friday, 23 September 2011

रोहन तप रहा है

रोहन तप रहा है   और 
शेष सदी की पेंदी से 
निकल रहा है समय
धूप एक घड़ी मारकर
तुम्हारी
हथेली की तरह
खुरदरी हो जाएगी

ठीकेदार के डम्फर पर सवार होकर
अब तुम पहुँचोगी ही बसुमती !
पहुँचोगी और
अन्य कामिनों पर नजर पड़ते ही 
तुम्हारी हँसी
बिखर जाएगी जैसे
सूखे सरसों की 
फलियों को छूते ही
छर-छर दाने निकल पड़ते हैं

क्वरी साइट पर 
रात ही में 
डाइनामाईट से चोट खाकर 
हडबडाती हुयी चट्टानें 
पहाड़ के पेट को चीर
बाहर लुढ़क गयी हैं
तुम्हारी दृष्टि पड़ते ही
मुलायम हो जाएँगी ये चट्टानें

देखते ही देखते
तुम्हारे हाथों में धारित घनों से
बोल्डर और चीप्स बन जाएँगी ये चट्टानें
शाम होते ही
भर जायेगा ठीकेदार का डम्फर

बही पर अंगूठा लगाने के वक्त
कनकौवे की तरह
देखेगा तुम्हे मुंशी
ऐसे वक्त में 
अपनी पेशानियों पर 
चुहचुहा आये पसीने को
नफरत से पोंछ दोगी
अपनी खुरदरी उँगलियों से 
और तुम्हारी बिन्दी
और भी चौड़ी
और भी सूर्ख हो जाएगी
जबकि

रोहन तप रहा है   और
शेष सदी की पेंदी से 
तेजी से निकल रहा है समय

प्रभात सरसिज
७ अगस्त, १९८६

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