बिम्ब बनता है पहाड़ का
हल्के तरंगों पर भी हिलने लगता है पहाड़ का बिम्ब
लेकिन
पहाड़ है कि जरा भी नहीं हिलता
कल्पना की दुनिया में
हू - बहू नहीं उतरना चाहता है पहाड़
सामने के पहाड़ पर
कभी रही होंगी परियाँ
उन्हें देख कवियों के मन में
बजता होगा कभी मृदंग - मुचरंग
अब रहती है इस पर
पहाड़ की बेटी रेजिना किस्कू
सरकारी वन-रक्षकों ने
जब उसे छेड़ने की कोशिश की
पहाड़ ने ही दिया बेटी के हाथों में
नुकीला धारदार पत्थर
प्रभात सरसिज
५ जुलाई, १९९२
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