Wednesday, 31 August 2011

पहाड़ (सात)

पहाड़ की तलहटी में लेटा
मैं देखता हूँ पहाड़
धरती के धागे से
एक पहाड़ मिलते हैं दूसरे पहाड़ से
जबकि 
पहाड़ के पुल के सहारे 
मिल रहा है धरती से आकाश 

तलहटी में लेटा
पहाड़ से आती बयार को
फेफड़े में भरता हुआ सोचता हूँ कि
समुद्र जब भी लेगा करवट 
प्लावन होगी धरती
फिर भी बचा रहेगा पहाड़
बची रहेगी पहाड़ भर धरती समुद्र के अन्दर
पहाड़ पर बचा रहेगा देवदारु
देवदारु के कपोल पर 
लिखी जाएगी कविता की प्रथम - पंक्ति 
फिर पहाड़ पर आएगा बसंत 
आएगी एक कोयल और
लगाएगी पहाड़ का चक्कर
आकाश-नक्षत्र गायेंगे पहाड़ की
गरिमा के गीत
मनाया जायेगा प्रथम-सृजन का
उल्लास-पर्व

प्रभात सरसिज
६ जुलाई, १९९२

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