Sunday, 28 August 2011

अपलक

दादा जी हांकते थे विक्टोरिया फिटिन
घोड़ों की चाल पर
जुगलबंदी करती थी
उनके मुरेठे की कलगी


सरगोशी की इच्छा प्रकट होते ही
पसंदीदा ऑस्टिन या मॉरिस के
क्लच-ब्रेक पर
तैनात होते थे पिता के पैर


मैं उनकी स्वीडिस कार चलाता हूँ
उनकी तीन पीढ़ियों से
मेरी तीन पीढ़ियों का अटूट रिश्ता है


जब उनकी सुन्दर पत्नी
रंगीन परिधानों में सज
सवार होती हैं
तो मलिन-वसनों में लिपटी
मेरी संतप्त अर्धांगिनी
देखती है उन्हें अपलक


प्रभात सरसिज
२३ अगस्त, १९९४
   

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