प्रतीक्षा कर रहा हूँ
कि कब सूरज उगे
कि कब सुअराज उगे और
अपनी सुनहरी किरणों से कनहरी के पद-प्रान्त के
कण-कण को सोना कर दे
कि पत्ता-पत्ता पन्ना के
असंख्य नगीनों की तरह दमकने लगे
मैं देखना चाहता हूँ कनहरी के कूबड़ की
सीधी ढलान पर पूरब की ओर झुके
उस अनाम पौधे को
जिसके कंधे पर
गुच्छा-भर फूल उग आये हैं
प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि
कब सूरज उगे और
कोमल किरणों से छू दे उन
खिले फूलों की पंखुड़ियों को
जिसका पौधा सूरज की ओर
अपनी बाहें फैलाये हुये है
मैं देखना चाहता हूँ सूर्य की किरणों से
दमकते माणिक के गुच्छे की तरह
इन फूलों को
दुर्गम-स्थल पर खिल आये
इन फूलों को मैं
अपनी दृष्टि से नहलाना चाहता हूँ -
सूर्य की उपस्थिति में
* हजारीबाग जिले का एक पहाड़ जहाँ घुमंतू सूर्योदय देखने पहुँचते हैं
प्रभात सरसिज
१० जून, १९९२
कनहरी हजारीबाग का दृश्य नहीं है।
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