Wednesday, 31 August 2011

खोलेगा रहस्य

प्रकट हुए हैं शब्द
अर्थों के मांस में फाँस की तरह अटके
प्रतिगामी आशयों को निस्तेज करते
सूर्याभिमुख हुए हैं आज 

कामगारों के मान-आन की आभा से
प्रदीप्त हुए हैं शब्द 
शरत के शोख बादलों की तरह
अलंघ्य उन्नत शिखरों पर
घनीभूत हुए हैं आज

सूर्याभिमुख शब्द दिनान्त के बाद
अहोरात्री में प्रहरी बन अड़ेंगे
प्रस्थान करेंगे अँधेरे के खिलाफ
शब्दों का प्रकाश-प्रकर्ष ही आज 
खोलेगा पृथ्वी का रहस्य

प्रभात सरसिज
२४ सितम्बर, १९९४ 

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