अर्थों के मांस में फाँस की तरह अटके
प्रतिगामी आशयों को निस्तेज करते
सूर्याभिमुख हुए हैं आज
कामगारों के मान-आन की आभा से
प्रदीप्त हुए हैं शब्द
शरत के शोख बादलों की तरह
अलंघ्य उन्नत शिखरों पर
घनीभूत हुए हैं आज
सूर्याभिमुख शब्द दिनान्त के बाद
अहोरात्री में प्रहरी बन अड़ेंगे
प्रस्थान करेंगे अँधेरे के खिलाफ
शब्दों का प्रकाश-प्रकर्ष ही आज
खोलेगा पृथ्वी का रहस्य
प्रभात सरसिज
२४ सितम्बर, १९९४
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