पूरी करेंगे वहशी
अस्थियों के ठाठर की छाती में
केवल धुकधुकी रहेगी सदी के
पतन के बाद
जय-पराजय की दुंदुभी
नहीं बजेगी
बर्बरता अपनी चोली बदल
मानवता को अपने बटन से नापेगी
भूखंड विशेष के
आकाश को
स्पुतनिक पर टिका कर
नचाएगी डायन
मेरी ही तरह चुप रहेगा इतिहास
भूगोल उसके छत्र में झालर बन नाचेगा
सदी के पतन के बाद
प्रभात सरसिज
२५ अगस्त, १९९४
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