लाऊंगा फूल
छू सकोगी तुम फूल
इन पर कल तितलियाँ लगी थीं
आज
तुम्हारी हथेलियों में गंध है हल्दी की
कल सुबह
इनकी पंखुड़ियों का
कन्धा बनाया था बुलबुल ने
आज
गजरा बन गाजेंगे तुम्हारे शीश पर
कल
फूल से सटे थे यात्रा में थके
दो पाखी
फिर नयी उड़ान पर चल पड़े
उड़ान से पहले इनके चोंच मिले थे
आज वही फूल लाऊंगा
तुम्हारे बेसर को अपना दर्पण बनायेंगे फूल
तुम्हारे होंठों के वंशधर हैं फूल
सजे सुशोभित होते हैं फूल - जैसे
सांस्कृतिक मोर्चा की बैठकों के अध्यक्ष-मंडल
हमारे-तुम्हारे प्यार की तरफदारी करते हैं फूल
हत्या-अन्याय का विरोध करते हैं फूल
आज लाऊंगा फूल
छू सकोगी तुम फूल
कल फूल महके थे
आज दहकेंगे फूल
प्रभात सरसिज
२३ फरवरी, १९९२
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