कांप रही थीं ठीक उसी समय अभिव्यक्ति को
बाँहों की तरह कटकर
गिरते देखा था यह एक स्वप्न था यथार्थ का स्वप्न
वह स्वप्न जो गुरुत्व के अस्तित्व को अस्वीकार
आसमान को सुराख़ में बदल देता है और
मैं आधार-रहित नीली सुराख़ में
उतर पड़ा था स्वप्न से साक्षात्कार करने के लिए
सब कुछ छोड़ कर आया था सारे दृश्यों से दूर
यहाँ न चट्टान पर पछाड़ खाती लहरें हैं
न बनस्पतियों को सिहराने वाली हवाएं
न होठों पर जड़ी प्रार्थनाएं
और न मंदिरों की पार्श्वछायाएं ही
चारों ओर केवल
सुराख़ का शांत नीला रंग
पसरा हुआ है
रंग मुझे याददाश्तों में घसीटता है और
मुझे पीठ पर जमें बेंत के
नीले निशान याद आते हैं यही रंग मुझे
सुराख़ की विश्रांति से काट रुखड़ी जमीन का
स्पर्श करा देता है और यह जमीन
मेरे चिदाकाश में एक तस्वीर के मानिन्द है
तस्वीर में पीठ है पथ पर नीले निशान हैं और
बीचोबीच दर्द करती हुयी रीढ़ की हड्डी
रीढ़ झुकती है मैं इसे महसूस तो
कर सकता हूँ पूरी छूट के साथ पर देख नहीं सकता
नीली सुराख़ में मैं
मुट्ठियाँ भींचे उतर रहा हूँ सारे शरीर में
अकड़न -सा महसूस करते हुए आहट स्पर्श और गंध
से दूर लेकिन दृश्यों से कंधे रगड़ता
*
इस तरह का अहसास मुझे
कई संदर्भों से जोड़ता है और रंग मुझे
इस प्रक्रिया में सहायता करता है
एकाएक रंगों ने करामात की और
पूरे नीलेपन में एक घटना की तरह आकाशगंगा फ़ैल गई
स्पष्ट अक्षरों जैसे तारक-दल सजते गए
इन्हीं अक्षरों में कहीं मेरी अभिव्यक्ति है जिसे
बाहों की तरह कटकर गिरते देखा था
हठात अक्षरों में विस्फोट होता है और
आकार लेते हुए तारक-दल जुलूस में बदल जाते हैं
इन्हीं विस्फोटों के बीच द्युति की तरह
एक बार अभिव्यक्ति कौंधी थी
*
जुलूस नजदीक आ रहे हैं इतने नंग-धरंग लोग
सभी के हाथों में रक्तिम पलाश
पूरे नीलेपन में पलाश का रंग नीली नसों में
रक्त-कणों के संचरित होने का अहसास कराता है
नंग-धरंग काले लोगों की नीली नसों में लाल रक्त
उपमाओं का ऐसा मूर्त रूप मुझे
पहली बार देखने को मिला था
*
रंगों का यह रेला
अंजुरियों में भरे अभिमंत्रित जल को
उलट देता है जो
इन वस्त्रहीनों के खिलाफ रची गई एक साजिश थी
द्युतिमान शिलाओं पर बैठ जल को
अभिमंत्रित करने के उपक्रम में जुटे हुए लोग
देवयोनि में अपने जन्म लेने का दंभ भर रहे हैं
विलास को गरिमा और पूर्वजन्म के कर्मफल ज्ञापित
करने वाले अब हर परिवर्तन को
अपशकुन समझ रहे हैं
*
रक्तिम पलाश से निकले रंगों की कलाबाजियाँ
पूर्ण बदलाव की कामशक्ति है
*
काले बाजुओं की उछरतीं नीली नसों में
प्रवाहमान ये रक्तिम-कण किरणों के पुंज में तब्दील हो रहे हैं
ये किरणें
उद्धत भीलों की प्रत्यंचा पर कसे बाण हैं जो
नाभिनालबद्ध रत्नजड़ित मस्तकों की ओर सधे हैं
अजस्र किरणों की तरह बाणों को देखकर
द्युतिमान शिलाओं पर बैठे हुए लोग
भयाक्रांत होने लगे हैं
अपने होठों पर
अस्फुट मंत्र उच्चारते ये
अपनी सुरक्षा में नीली सुराख की ओर बढ़ते हैं जहाँ
रंगों के पहरे हैं और
रंग कुशल प्रहरी हैं
*
इन्हीं रंगों की परिव्याप्ति में
मैं और नीचे उतर आता हूँ हठात
रंगों में एक और विस्फोट होता है और
मेरे पैर आधार ग्रहण कर लेते हैं
यहीं पर बाण तैयार हो रहे हैं और
काले हाथों को तरकश सौंपती
और कोई नहीं बल्कि
मेरी ही अभिव्यक्ति है जो
अब कभी भी बाँहों की तरह कट कर नहीं गिरेगी
प्रभात सरसिज